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कुंज कुंज नग़्मा-ज़न बसंत आ गई | शाही शायरी
kunj kunj naghma-zan basant aa gai

ग़ज़ल

कुंज कुंज नग़्मा-ज़न बसंत आ गई

नासिर काज़मी

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कुंज कुंज नग़्मा-ज़न बसंत आ गई
अब सजेगी अंजुमन बसंत आ गई

उड़ रहे हैं शहर में पतंग रंग रंग
जगमगा उठा गगन बसंत आ गई

मोहने लुभाने वाले प्यारे प्यारे लोग
देखना चमन चमन बसंत आ गई

सब्ज़ खेतियों पे फिर निखार आ गया
ले के ज़र्द पैरहन बसंत आ गई

पिछले साल के मलाल दिल से मिट गए
ले के फिर नई चुभन बसंत आ गई