कुछ उस को याद करूँ उस का इंतिज़ार करूँ
बहुत सुकूत है मैं ख़ुद को बे-क़रार करूँ
भरूँ मैं रंग नए मुज़्महिल तमन्ना में
उदास रात को आसूदा-ए-बहार करूँ
कुछ और चाह बढ़ाऊँ कुछ और दर्द सहूँ
जो मुझ से दूर है यूँ उस को हम-कनार करूँ
वफ़ा के नाम पे क्या क्या जफ़ाएँ होती रहीं
मैं हर लिबास-ए-जफ़ा आज तार तार करूँ
वो मेरी राह में काँटे बिछाए मैं लेकिन
उसी को प्यार करूँ उस पे ए'तिबार करूँ
ये मेरे ख़्वाब मिरी ज़िंदगी का सरमाया
न क्यूँ ये ख़्वाब भी मैं आज नज़्र-ए-यार करूँ
ग़ज़ल
कुछ उस को याद करूँ उस का इंतिज़ार करूँ
अहमद हमदानी