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कुछ नहीं क़ील-ओ-क़ाल में ऐ दोस्त | शाही शायरी
kuchh nahin qil-o-qal mein ai dost

ग़ज़ल

कुछ नहीं क़ील-ओ-क़ाल में ऐ दोस्त

महमूद अज़हर

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कुछ नहीं क़ील-ओ-क़ाल में ऐ दोस्त
मस्त रह अपने हाल में ऐ दोस्त

ज़िंदगी उस का ज़िक्र सुनते ही
आ गई इश्तिआ'ल में ऐ दोस्त

साँस लेना मुहाल है यूँ भी
और ऐसे वबाल में ऐ दोस्त

किस क़बीले के लोग हैं हम लोग
ख़ुश हैं या'नी ज़वाल में ऐ दोस्त

तेरी सूरत दिखाई पड़ती है
क्या ग़ज़ल क्या ग़ज़ाल में ऐ दोस्त

याद-ए-माज़ी में उम्र कट जाए
ख़ाक है माह-ओ-साल में ऐ दोस्त

सच कहूँ तो जवाब रक्खा है
आप ही के सवाल में ऐ दोस्त

कोई 'महमूद' सा अगर है तो
पेश कीजे मिसाल में ऐ दोस्त