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कुछ हर्फ़ ओ सुख़न पहले तो अख़बार में आया | शाही शायरी
kuchh harf o suKHan pahle to aKHbar mein aaya

ग़ज़ल

कुछ हर्फ़ ओ सुख़न पहले तो अख़बार में आया

इरफ़ान सिद्दीक़ी

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कुछ हर्फ़ ओ सुख़न पहले तो अख़बार में आया
फिर इश्क़ मिरा कूचा ओ बाज़ार में आया

अब आख़िर-ए-शब दर्द का भटका हुआ रहवार
आया भी तो शहर-ए-लब-ओ-रुख़्सार में आया

क्या नक़्श हुआ दिल के अंधेरे में नुमूदार
क्या रोज़न-ए-रौशन मिरी दीवार में आया

हैराँ हूँ कि फिर उस ने न की सब्र की ताकीद
बाज़ू जो मिरा बाज़ू-ए-दिलदार में आया

ये आइना-गुफ़्तार कोई और है मुझ में
सोचा भी न था मैं ने जो इज़हार में आया

हासिल न हुआ मुझ को वो महताब तो माबूद
क्या फ़र्क़ तिरे साबित ओ सय्यार में आया