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कुछ भी नहीं है बाक़ी बाज़ार चल रहा है | शाही शायरी
kuchh bhi nahin hai baqi bazar chal raha hai

ग़ज़ल

कुछ भी नहीं है बाक़ी बाज़ार चल रहा है

सालिम सलीम

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कुछ भी नहीं है बाक़ी बाज़ार चल रहा है
ये कारोबार-ए-दुनिया बेकार चल रहा है

वो जो ज़मीं पे कब से इक पाँव पर खड़ा था
सुनते हैं आसमाँ के उस पार चल रहा है

कुछ मुज़्महिल सा मैं भी रहता हूँ अपने अंदर
वो भी बहुत दिनों से बीमार चल रहा है

शोरीदगी हमारी ऐसे तो कम न होगी
देखो वो हो के कितना तय्यार चल रहा है

तुम आओ तो कुछ उस की मिट्टी इधर उधर हो
अब तक तो दिल का रस्ता हमवार चल रहा है