कुछ भी हो मिरा हाल नुमायाँ तो नहीं है
दिल चाक सही ख़ैर गरेबाँ तो नहीं है
हुस्न-ए-तलब-ए-बर्क़ है तामीर-ए-नशेमन
वर्ना हवस-ए-सैर-ए-गुलिस्ताँ तो नहीं है
कुछ नक़्श तिरी याद के बाक़ी हैं अभी तक
दिल बे-सर-ओ-सामाँ सही वीराँ तो नहीं है
हम दर्द के मारे ही गराँ-जाँ हैं वगर्ना
जीना तिरी फ़ुर्क़त में कुछ आसाँ तो नहीं है
टूटा तो अज़ीज़ और हुआ अहल-ए-वफ़ा को
दिल भी कहीं उस शोख़ का पैमाँ तो नहीं है
ग़ज़ल
कुछ भी हो मिरा हाल नुमायाँ तो नहीं है
अज़ीम मुर्तज़ा