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कुछ भी हो मिरा हाल नुमायाँ तो नहीं है | शाही शायरी
kuchh bhi ho mera haal numayan to nahin hai

ग़ज़ल

कुछ भी हो मिरा हाल नुमायाँ तो नहीं है

अज़ीम मुर्तज़ा

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कुछ भी हो मिरा हाल नुमायाँ तो नहीं है
दिल चाक सही ख़ैर गरेबाँ तो नहीं है

हुस्न-ए-तलब-ए-बर्क़ है तामीर-ए-नशेमन
वर्ना हवस-ए-सैर-ए-गुलिस्ताँ तो नहीं है

कुछ नक़्श तिरी याद के बाक़ी हैं अभी तक
दिल बे-सर-ओ-सामाँ सही वीराँ तो नहीं है

हम दर्द के मारे ही गराँ-जाँ हैं वगर्ना
जीना तिरी फ़ुर्क़त में कुछ आसाँ तो नहीं है

टूटा तो अज़ीज़ और हुआ अहल-ए-वफ़ा को
दिल भी कहीं उस शोख़ का पैमाँ तो नहीं है