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कोयल नीं आ के कोक सुनाई बसंत रुत | शाही शायरी
koyal nin aa ke cock sunai basant rut

ग़ज़ल

कोयल नीं आ के कोक सुनाई बसंत रुत

आबरू शाह मुबारक

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कोयल नीं आ के कोक सुनाई बसंत रुत
बौराए ख़ास-ओ-आम कि आई बसंत रुत

वो ज़र्द-पोश जिस कूँ भर आग़ोश में लिया
गोया कि तब गले सीं लगाई बसंत रुत

वो ज़र्द-पोश जिस का कि गुन गावते हैं हम
शोख़ी नीं उस की नाच नचाई बसंत रुत

ग़ुंचे नीं इस बहार में कडवाया अपना दिल
बुलबुल चमन में फूल के गाई बसंत रुत

टेसू के फूल दश्ना-ए-ख़ूनी हुए उसे
ब्रिहन के जी कूँ है ये कसाई बसंत रुत

गाए हिंडोल आज कलावंत खुलस खुलस
हर तान बीच क्या के फुलाई बसंत रुत

बुलबुल हुआ है देख सदा रंग की बहार
इस साल 'आबरू' कूँ बन आई बसंत रुत