कोई रस्ता कोई रहरव कोई अपना नहीं मिलता
मोहब्बत के मुसाफ़िर को कहीं साया नहीं मिलता
मिरी आँखों से अश्कों के बजाए रेत गिरती है
मगर अंदर कहीं भी रेत का दरिया नहीं मिलता
बड़ी सादा-दिली से एक दिन बच्चे ने ये पूछा
कोई भी शख़्स इस दुनिया में क्यूँ हँसता नहीं मिलता
हमें हर पल तुम्हारी ही कमी महसूस होती है
तुम्हारी याद से ग़ाफ़िल कोई लम्हा नहीं मिलता
ख़यालों में कई किरदार मुझ से रोज़ मिलते हैं
हक़ीक़त में मगर ऐसा कोई चेहरा नहीं मिलता
अजब जल्वा-नुमाई है जिधर देखूँ तुम्ही तुम हो
मुझे तो आइने में अक्स भी मेरा नहीं मिलता
मैं मिट्टी से बने मुर्दा बदन को ले के फिरता हूँ
मगर इस शहर में 'अन्सर दम-ए-ईसा नहीं मिलता

ग़ज़ल
कोई रस्ता कोई रहरव कोई अपना नहीं मिलता
राशिद क़य्यूम अनसर