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कोई क़िस्सा नया सुना कर देख | शाही शायरी
koi qissa naya suna kar dekh

ग़ज़ल

कोई क़िस्सा नया सुना कर देख

सय्यदा कौसर मनव्वर शरक़पुरी

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कोई क़िस्सा नया सुना कर देख
हर्फ़ से हर्फ़ को मिला कर देख

जो भी चादर बिछा के बैठा है
उस से नज़रें सभी मिला कर देख

ना-गहानी सी इक आफ़त है
उस के बातिन को कुछ घुमा कर देख

हीला-गर है किसी नदामत में
उस को रस्ता कोई दिखा कर देख

ख़ुद पे ज़ाहिर नहीं है जो इक शख़्स
उस को मुसहफ़ कोई पढ़ा कर देख

कोई सादा नहीं जहाँ में अब
ख़ुद को सादा यहाँ बना कर देख

कोई बच्चा उदास बैठा है
उस को तू भी ज़रा हँसा कर देख

तुझ पे लाज़िम नहीं है अब 'कौसर'
तू भी पीछा कभी छुड़ा कर देख