कोई मौसम भी हम को रास नहीं
वो नहीं है तो कुछ भी पास नहीं
एक मुद्दत से दिल के पास है वो
एक मुद्दत से दिल उदास नहीं
जब से देखा है शाम आँखों में
तब से क़ाएम मिरे हवास नहीं
मेरे लहजे में उस की ख़ुश्बू है
उस की बातों में मेरी बास नहीं
जितना शफ़्फ़ाफ़ है तिरा आँचल
इतना उजला मिरा लिबास नहीं
सामने मेरे एक दरिया है
होंट सूखे हैं फिर भी प्यास नहीं
जिस को चाहा है जान-ओ-दिल से 'हसन'
जाने वो क्यूँ नज़र-शनास नहीं
ग़ज़ल
कोई मौसम भी हम को रास नहीं
हसन रिज़वी