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कोई ख़्वाब था जो बिखर गया कोई दर्द था जो ठहर गया | शाही शायरी
koi KHwab tha jo bikhar gaya koi dard tha jo Thahar gaya

ग़ज़ल

कोई ख़्वाब था जो बिखर गया कोई दर्द था जो ठहर गया

रिज़वानुर्रज़ा रिज़वान

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कोई ख़्वाब था जो बिखर गया कोई दर्द था जो ठहर गया
मगर इस का कोई भी ग़म नहीं जो गुज़र गया सो गुज़र गया

ये दिल-ओ-नज़र का मोआमला भी बहुत अजीब-ओ-ग़रीब है
कभी इन लबों पे हँसी रही कभी अश्क आँख में भर गया

मैं ज़बाँ से कुछ भी न कह सका वो नज़र से कुछ न समझ सका
न मिरे ही दिल से झिजक गई न तो उस के दिल से ही डर गया

कभी तुझ से भी न सँभल सका कभी मुझ से भी न सँभल सका
तिरा आइना भी बिखर गया मिरा आइना भी बिखर गया

तुझे होगा उस का मलाल क्या मुझे होगा उस का ख़याल क्या
तिरे हुस्न से भी कशिश गई मिरे इश्क़ से भी असर गया

वो हसीन चेहरों की भीड़ थी कि नज़र भटकती ही रह गई
तिरी जुस्तुजू का नशा था जो किसी मोड़ पर वो उतर गया

ये जो रंग-ए-फ़िक्र-ओ-ख़याल है ये तिरी नज़र का कमाल है
तिरा हुस्न था कोई आइना जिसे देख कर मैं सँवर गया