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कोई जहाँ में न यारब हो मुब्तला-ए-फ़िराक़ | शाही शायरी
koi jahan mein na yarab ho mubtala-e-firaq

ग़ज़ल

कोई जहाँ में न यारब हो मुब्तला-ए-फ़िराक़

हफ़ीज़ जौनपुरी

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कोई जहाँ में न यारब हो मुब्तला-ए-फ़िराक़
किसी की जान की दुश्मन न हो बला-ए-फ़िराक़

हज़ार तरह के सदमे इसे गवारा हैं
मगर उठा नहीं सकता है दिल जफ़ा-ए-फ़िराक़

लबों पे जान है अब सदमा-हा-ए-दूरी से
ख़बर विसाल की देती है इंतिहा-ए-फ़िराक़

ज़बान बंद है ये जोश-ए-ग़म का आलम है
बयान हो नहीं सकता है माजरा-ए-फ़िराक़

करें जो ज़ब्त कलेजा सराहिए उन का
कि आसमाँ को बुलाते हैं नाला-हा-ए-फ़िराक़

जुदा 'हफ़ीज़' हुआ कौन तेरे पहलू से
लबों पर आठ-पहर है जो हाए हाए फ़िराक़