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कोई हसीन है मुख़्तार-ए-कार-ख़ाना-ए-इश्क़ | शाही शायरी
koi hasin hai muKHtar-e-kar-KHana-e-ishq

ग़ज़ल

कोई हसीन है मुख़्तार-ए-कार-ख़ाना-ए-इश्क़

अहमद हुसैन माइल

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कोई हसीन है मुख़्तार-ए-कार-ख़ाना-ए-इश्क़
कि ला-मकाँ ही की चौखट है आस्ताना-ए-इश्क़

निगाहें ढूँढ रही हैं दिल-ए-यगाना-ए-इश्क़
इशारे पूछ रहे हैं कहाँ है ख़ाना-ए-इश्क़

फिरेंगे हश्र में गर्द-ए-दिल-ए-यगाना-ए-इश्क़
करेंगे पेश-ए-ख़ुदा हम तवाफ़-ए-ख़ाना-ए-इश्क़

नई सदा हो नए होंठ हों नया लहजा
नई ज़बाँ से कहूँ गर कहूँ फ़साना-ए-इश्क़

जो मौलवी हैं वो लिक्खेंगे कुफ़्र के फ़तवे
सुनाऊँ सूरत-ए-मंसूर अगर तराना-ए-इश्क़

अगर लगे तो लगे चोट मेरे नाले की
अगर पड़े तो पड़े दिल पे ताज़ियाना-ए-इश्क़

जो डाल दें उसे पत्थर पे भी फले-फूले
दरख़्त-ए-तूर बने सब्ज़ हो के दाना-ए-इश्क़

तुम्हीं कहो जो लुटा दें तो कौन ख़ाली हो
ख़ज़ाना हुस्न का अफ़्ज़ूँ है या ख़ज़ाना-ए-इश्क़

वो रात आए कि सर तेरा ले के बाज़ू पर
तुझे सुलाऊँ बयाँ कर के मैं फ़साना-ए-इश्क़

वो दर तक आते नहीं दर से हम नहीं उठते
उधर बहाना-ए-हुस्न और इधर बहाना-ए-इश्क़

सिखाई किस ने ये रफ़्तार मेरे नाले को
कमर की तरह लचकता है ताज़ियाना-ए-इश्क़

किसी को प्यार करेगा शबाब में तू भी
तिरे भी घर में जलेगा चराग़-ए-ख़ाना-ए-इश्क़

जो ख़ुश-नवीस मिले कोई देंगे दिल अपना
हम इस किताब में लिखवाएँगे फ़साना-ए-इश्क़

गए हैं वो मिरी महफ़िल में भूल कर रूमाल
ये जा-नमाज़ बिछा कर पढ़ूँ दोगाना-ए-इशक़

किसी के हुस्न ने काफ़िर बना दिया 'माइल'
लगा के क़श्क़ा-ए-दुर्द-ए-शराब-ख़ाना-ए-इश्क़