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कोई गुलाब यहाँ पर खिला के देखते हैं | शाही शायरी
koi gulab yahan par khila ke dekhte hain

ग़ज़ल

कोई गुलाब यहाँ पर खिला के देखते हैं

असलम हबीब

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कोई गुलाब यहाँ पर खिला के देखते हैं
चलो ख़राबा-ए-जाँ को सजा के देखते हैं

जहाँ को भूल के तुम को भुला के देखते हैं
अब अपने आप को दिल से लगा के देखते हैं

बिगड़ गए थे जिसे सुन के वक़्त के तेवर
जहाँ को बात वही फिर सुना के देखते हैं

कभी किसी का भी एहसाँ नहीं लिया हम ने
अब अपने सर पे ये एहसाँ उठा के देखते हैं

बहुत दिनों से कोई बात काम की न हुई
चलो फ़लक को ज़मीं पर बिछा के देखते हैं

नज़र नज़र तो कई बार पढ़ चुके उस को
ग़ज़ल को आज ज़रा गुनगुना के देखते हैं

ज़माना हम पे बहुत देर हँस चुका 'असलम'
चलो अब उस की हँसी भी उड़ा के देखते हैं