EN اردو
कोई फ़रियाद तिरे दिल में दबी हो जैसे | शाही शायरी
koi fariyaad tere dil mein dabi ho jaise

ग़ज़ल

कोई फ़रियाद तिरे दिल में दबी हो जैसे

फ़ैज़ अनवर

;

कोई फ़रियाद तिरे दिल में दबी हो जैसे
तू ने आँखों से कोई बात कही हो जैसे

जागते जागते इक उम्र कटी हो जैसे
जान बाक़ी है मगर साँस रुकी हो जैसे

हर मुलाक़ात पे महसूस यही होता है
मुझ से कुछ तेरी नज़र पूछ रही हो जैसे

राह चलते हुए अक्सर ये गुमाँ होता है
वो नज़र छुप के मुझे देख रही हो जैसे

एक लम्हे में सिमट आया है सदियों का सफ़र
ज़िंदगी तेज़ बहुत तेज़ चली हो जैसे

इस तरह पहरों तुझे सोचता रहता हूँ मैं
मेरी हर साँस तिरे नाम लिखी हो जैसे