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कोई दाग़ है मिरे नाम पर | शाही शायरी
koi dagh hai mere nam par

ग़ज़ल

कोई दाग़ है मिरे नाम पर

मुनीर नियाज़ी

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कोई दाग़ है मिरे नाम पर
कोई साया मेरे कलाम पर

ये पहाड़ है मिरे सामने
कि किताब मंज़र-ए-आम पर

किसी इंतिज़ार-ए-नज़र में है
कोई रौशनी किसी बाम पर

ये नगर परिंदों का ग़ोल है
जो गिरा है दाना-ओ-दाम पर

ग़म-ए-ख़ास पर कभी चुप रहे
कभी रो दिए ग़म-ए-आम पर

है 'मुनीर' हैरत-ए-मुस्तक़िल
मैं खड़ा हूँ ऐसे मक़ाम पर