कोई दाग़ है मिरे नाम पर
कोई साया मेरे कलाम पर
ये पहाड़ है मिरे सामने
कि किताब मंज़र-ए-आम पर
किसी इंतिज़ार-ए-नज़र में है
कोई रौशनी किसी बाम पर
ये नगर परिंदों का ग़ोल है
जो गिरा है दाना-ओ-दाम पर
ग़म-ए-ख़ास पर कभी चुप रहे
कभी रो दिए ग़म-ए-आम पर
है 'मुनीर' हैरत-ए-मुस्तक़िल
मैं खड़ा हूँ ऐसे मक़ाम पर
ग़ज़ल
कोई दाग़ है मिरे नाम पर
मुनीर नियाज़ी