किया मैं ने रो कर फ़िशार-ए-गरेबाँ 
रग-ए-अब्र था तार-तार-ए-गरेबाँ 
कहीं दस्त-ए-चालाक नाख़ुन न लागे 
कि सीना है क़ुर्ब-ओ-जवार-ए-गरेबाँ 
निशाँ अश्क-ए-ख़ूनीं के उड़ते चले हैं 
ख़िज़ाँ हो चली है बहार-ए-गरेबाँ 
जुनूँ तेरी मिन्नत है मुझ पर कि तू ने 
न रक्खा मिरे सर पे बार-ए-गरेबाँ 
ज़ियारत करूँ दिल से ख़स्ता-जिगर की 
कहाँ होगी यारब मज़ार-ए-गरेबाँ 
कहीं जाए ये दौर-ए-दामन भी जल्दी 
कि आख़िर हुआ रोज़गार-ए-गरेबाँ 
फिरूँ 'मीर' उर्यां न दामन का ग़म हो 
न बाक़ी रहे ख़ार-ख़ार-ए-गरेबाँ
        ग़ज़ल
किया मैं ने रो कर फ़िशार-ए-गरेबाँ
मीर तक़ी मीर

