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कितने गिर्दाब खो गए मुझ में | शाही शायरी
kitne girdab kho gae mujh mein

ग़ज़ल

कितने गिर्दाब खो गए मुझ में

ओसामा ज़ाकिर

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कितने गिर्दाब खो गए मुझ में
मेरे सब ख़्वाब खो गए मुझ में

सादगी मेरी ढूँड लाई तुम्हें
तुम थे चालाक खो गए मुझ में

उन के होने से मेरा होना है
लफ़्ज़ लौलाक हो गए मुझ में

रोज़ ढलते हैं हर्फ़-ओ-सौत के ज़र्फ़
किस के ग़म चाक हो गए मुझे में

बे-झिजक मुझ में हो गए हो दराज़
तुम तो बेबाक हो गए मुझ में

आँसुओं में तजल्लियाँ झमकें
दुर्र-ए-नायाब खो गए मुझ में