कितने दिन बा'द फिर आज उन से मुलाक़ात हुई
रुक गया वक़्त दरख़्शंदा मिरी रात हुई
फिर निगाहों ने निगाहों से सुना क़िस्सा-ए-शौक़
फिर इशारों ही इशारों में हर इक बात हुई
चलते चलते उन्हें देखा था सर-ए-राह कहीं
आरज़ू उन की उसी दिन से मिरे सात हुई
कौन कहता है मैं सहरा में हूँ मैं तिश्ना हूँ
ख़ून-ए-दिल रोज़ बहा रोज़ ही बरसात हुई
दर-ए-मय-ख़ाना पे आसूदा-ए-राहत हूँ 'ख़लिश'
ख़त्म अब मेरे लिए गर्दिश-ए-हालात हुई

ग़ज़ल
कितने दिन बा'द फिर आज उन से मुलाक़ात हुई
ख़लिश देहलवी