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कितना भी मुस्कुराइए दिल है मगर बुझा बुझा | शाही शायरी
kitna bhi muskuraiye dil hai magar bujha bujha

ग़ज़ल

कितना भी मुस्कुराइए दिल है मगर बुझा बुझा

बनो ताहिरा सईद

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कितना भी मुस्कुराइए दिल है मगर बुझा बुझा
गीत रसीले गाइए दिल है मगर बुझा बुझा

अश्क नहीं तो क्या हुआ आह नहीं तो क्या हुआ
लाख सँवर के आइए दिल है मगर बुझा बुझा

रुख़ पे बहार की फबन होंटों पे मख़मली सुख़न
मुज़्दा-ए-गुल सुनाइए दिल है मगर बुझा बुझा

आप से ख़ुद अलग अलग आप की दावत-ए-तरब
हम से न कुछ छुपाइए दिल है मगर बुझा बुझा

जन्नत-ए-नग़्मा-ओ-ग़ज़ल महफ़िल-ए-सोज़-ओ-साज़-ए-इश्क़
'ताहिरा' क्या बताइए दिल है मगर बुझा बुझा