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किसी मौसम की वो बातें जो तेरी याद करता हूँ | शाही शायरी
kisi mausam ki wo baaten jo teri yaad karta hun

ग़ज़ल

किसी मौसम की वो बातें जो तेरी याद करता हूँ

मीर हसन

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किसी मौसम की वो बातें जो तेरी याद करता हूँ
उन्हीं बातों को फिर फिर कह दिल अपना शाद करता हूँ

नहीं मालूम मुझ पर भी ये अहवाल अपनी ज़ारी का
कि मैं मिस्ल-ए-जरस किस के लिए फ़रियाद करता हूँ

ये दिल कुछ आफी हो जाता है बंद और आफी खुलता है
न मैं क़ैद इस को करता हूँ न मैं आज़ाद करता हूँ

जिगर जल कर हुआ है ख़ाक और तिस पर मैं आहों से
जो कुछ बाक़ी रहे है गर्द सो बर्बाद करता हूँ

ग़ुबार-ए-दिल को आब-ए-तेग़ से उस के मिला कर मैं
नए सर से इमारत दिल की फिर बुनियाद करता हूँ

मिरे आबाद दिल को कर ख़राब उस ने कहा हँस हँस
कि मैं इस मुल्क का नाम अब ख़राब-आबाद करता हूँ

कभी तेरे भी दिल में ये गुज़रती है कि मैं नाहक़
भला दिल पर 'हसन' के इतनी क्यूँ बे-दाद करता हूँ