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किसी की नेक हो या बद जहाँ में ख़ू नहीं छुपती | शाही शायरी
kisi ki nek ho ya bad jahan mein KHu nahin chhupti

ग़ज़ल

किसी की नेक हो या बद जहाँ में ख़ू नहीं छुपती

ऐश देहलवी

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किसी की नेक हो या बद जहाँ में ख़ू नहीं छुपती
छुपाए लाख ख़ुशबू या कोई बदबू नहीं छुपती

ज़बाँ पर जब तलक आती नहीं अलबत्ता छुपती है
ज़बाँ पर जब कि आई बात ऐ गुल-रू नहीं छुपती

यहाँ तो तुझ को सौ पर्दे लगे हैं अहल-ए-तक़्वा से
भला रिंदों से क्यूँ ऐ दुख़्तर-ए-रज़ तू नहीं छुपती

सलीक़ा क्या करे इस में कोई बेताबी-ए-जाँ को
छुपाओ सौ तरह जब दिल हो बे-क़ाबू नहीं छुपती

हिजाब उस में कहाँ है बे-हिजाबी जिस की आदत हो
छुपा कर लाख पीवे गर कोई दारू नहीं छुपती

रुख़-ए-रौशन को तुम क्यूँ छोड़ कर ज़ुल्फ़ें छुपाते हो
चमक रुख़ की छुपाए से तह-ए-गेसू नहीं छुपती

ये रीश ओ जुब्बा ओ दस्तार ज़ाहिद की बनावट है
तबीअत बे-तकल्लुफ़ जिस की हो यकसू नहीं छुपती

कलाम अपना अबस तू अहल-ए-दानिश से छुपाता है
जहाँ में 'ऐश' तर्ज़-ए-शाइर-ए-ख़ुश-गो नहीं छुपती