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किसी के साथ किया निस्बत हुई थी | शाही शायरी
kisi ke sath kiya nisbat hui thi

ग़ज़ल

किसी के साथ किया निस्बत हुई थी

यासमीन हबीब

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किसी के साथ क्या निस्बत हुई थी
मैं अपने-आप से रुख़्सत हुई थी

पलट कर पीछे देखा था ज़रा सा
मुझे ख़ुद पर बड़ी हैरत हुई थी

अचानक आ गई थी अपने आगे
अचानक बात की जुरअत हुई थी

ख़ुद अपना साथ भी चुभने लगा था
अजब तन्हाई की आदत हुई थी

मिरे अंदर भँवर उठने लगे थे
समुंदर से बड़ी वहशत हुई थी

बहुत सरगोशियाँ शीशे से की थीं
किसी की मुझ से भी ग़ीबत हुई थी