किसी के जाल में आ कर मैं अपना दिल गँवा बैठा
मुझे था इश्क़ क़ातिल से मैं अपना सर कटा बैठा
ग़ज़ब का संग-दिल आग़ाज़ से ही बे-मुरव्वत था
कि जिस से दूर रहना था मैं उस के पास जा बैठा
मिरा माबूद तो इश्क़-ए-बुताँ से लाख अफ़ज़ल था
मुझे किस से लगाना था मैं दिल किस से लगा बैठा
ग़ज़ल
किसी के जाल में आ कर मैं अपना दिल गँवा बैठा
बाबर रहमान शाह