किसी हर्फ़ में किसी बाब में नहीं आएगा
तिरा ज़िक्र मेरी किताब में नहीं आएगा
नहीं जाएगी किसी आँख से कहीं रौशनी
कोई ख़्वाब उस के अज़ाब में नहीं आएगा
कोई ख़ुद को सहरा नहीं करेगा मिरी तरह
कोई ख़्वाहिशों के सराब में नहीं आएगा
दिल-ए-बद-गुमाँ तिरे मौसमों को नवेद हो
कोई ख़ार दस्त-ए-गुलाब में नहीं आएगा
उसे लाख दिल से पुकार लो उसे देख लो
कोई एक हर्फ़ जवाब में नहीं आएगा
तिरी राह तकते रहे अगरचे ख़बर भी थी
कि ये दिन भी तेरे हिसाब में नहीं आएगा

ग़ज़ल
किसी हर्फ़ में किसी बाब में नहीं आएगा
नोशी गिलानी