किसी दिन तो हमारा दर्द-ए-दिल सोज़-ए-जिगर देखो
कभी तो भूल कर आओ कभी तो पूछ कर देखो
न देखो दोस्त बन कर तुम तो दुश्मन की नज़र देखो
ख़फ़ा हो कर बिगड़ कर रूठ कर देखो मगर देखो
नहीं भरती तबीअ'त लाख देखो उम्र-भर देखो
ख़ुदा की शान है ऐसे भी होते हैं बशर देखो
किसी को जब से देखा है दिखाई कुछ नहीं देता
हुई मेरी नज़र को दोस्तो किस की नज़र देखो
तरसती हैं ये आँखें देखने को दिल तड़पता है
ज़ियादा से ज़ियादा मुख़्तसर से मुख़्तसर देखो
मुक़द्दर से निभी तुम एक गोया भोले-भाले थे
कोई ज़ालिम से ज़ालिम फ़ित्ना-गर से फ़ित्ना-गर देखो
कही हैं हम-नशीनो दिल-लगी में तुम ने जो बातें
उन्हें सच-मुच पहुँच जाए न ये झूटी ख़बर देखो
फिर उस पर नुक्ता-चीं है नुक्ता-दाँ है शैख़ लोगों में
अनाड़ी पढ़ रहा है दुख़्त-ए-रज़ को दुख़्त-ए-ज़र देखो
कोई बेताब कोई मस्त कोई चुप कोई हैराँ
तिरी महफ़िल में गोया इक तमाशा है जिधर देखो
तुम्हारी बज़्म बात इंसानियत की फिर रक़ीबों में
भरे हैं आदमी की सूरतों के जानवर देखो
न हो जो बंदा-पर्वर बंदगी को बंदगी उस की
जनाब-ए-दिल ख़ुदा रज़्ज़ाक़ कोई और घर देखो
नहीं अज़-रू-ए-क़ानून-ए-मोहब्बत जुर्म-ए-नज़्ज़ारा
तो फिर क्यूँ हैं जनाब-ए-दिल अगर देखो मगर देखो
उसे देखा है जिस के देखने को लोग मरते हैं
नज़र बाज़ू हमारी भी ज़रा हद्द-ए-नज़र देखो
'सफ़ी' को शाइ'री से मिल गई हर-दिल-अज़ीज़ी भी
दरोग़-ए-मस्लहत-आमेज़ भी है क्या हुनर देखो

ग़ज़ल
किसी दिन तो हमारा दर्द-ए-दिल सोज़-ए-जिगर देखो
सफ़ी औरंगाबादी