EN اردو
किसी भी शहर में जाओ कहीं क़याम करो | शाही शायरी
kisi bhi shahr mein jao kahin qayam karo

ग़ज़ल

किसी भी शहर में जाओ कहीं क़याम करो

निदा फ़ाज़ली

;

किसी भी शहर में जाओ कहीं क़याम करो
कोई फ़ज़ा कोई मंज़र किसी के नाम करो

दुआ सलाम ज़रूरी है शहर वालों से
मगर अकेले में अपना भी एहतिराम करो

हमेशा अम्न नहीं होता फ़ाख़्ताओं में
कभी-कभार उक़ाबों से भी कलाम करो

हर एक बस्ती बदलती है रंग-रूप कई
जहाँ भी सुब्ह गुज़ारो उधर ही शाम करो

ख़ुदा के हुक्म से शैतान भी है आदम भी
वो अपना काम करेगा तुम अपना काम करो