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किसे मालूम था इक दिन मोहब्बत बे-ज़बाँ होगी | शाही शायरी
kise malum tha ek din mohabbat be-zaban hogi

ग़ज़ल

किसे मालूम था इक दिन मोहब्बत बे-ज़बाँ होगी

राजेन्द्र कृष्ण

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किसे मालूम था इक दिन मोहब्बत बे-ज़बाँ होगी
वो ज़ालिम आसमाँ जाने मिरी दुनिया कहाँ होगी

कभी इक ख़्वाब देखा था मिरे पहलू में तुम होगी
कहानी प्यार की आँखों ही आँखों में बयाँ होगी

लहू दिल का मिरी आँखों का पानी बन के कहता है
न हम होंगे न तुम होगे हमारी दास्ताँ होगी