किस तवक़्क़ो' पे क्या उठा रखिए
दिल सलामत नहीं तो क्या रखिए
लिखिए कुछ और दास्तान-ए-दिल
और ज़माने को मुब्तला रखिए
सर में सौदा रहे मोहब्बत का
पाँव में ख़ाक की अना रखिए
बूँद भर आब क्या मुक़द्दर है
अब्र रखिए तो कुछ हवा रखिए
इस से पहले कोई जलाने आए
आप अपना ही घर जला रखिए
क़ब्ल-ए-इंसाफ़ चल बसा मुल्ज़िम
अब अदालत से क्या रवा रखिए
जान जानी है जब अबस ही 'हमेश'
फिर तो दुनिया से फ़ासला रखिए
ग़ज़ल
किस तवक़्क़ो' पे क्या उठा रखिए
अहमद हमेश