किस तरह नाला करे बुलबुल चमन की याद में
घिस गई उस की ज़बाँ तो शिकवा-ए-सय्याद में
दाद-ख़्वाहों की अगर पुर्सिश हुई रोज़-ए-जज़ा
सब से पहले आएँगे हम अर्सा-ए-फ़र्याद में
क्या लिपट जाएँ तिरा क़ामत समझ कर इस को हम
ये नज़ाकत ये सबाहत है कहाँ शमशाद में
काम माशूक़ों से भी आशिक़ के लेता है ये इश्क़
क्यूँ न शीरीं जान दे अपनी ग़म-ए-फ़रहाद में
दामन-ए-दिल ऐ नसीम-ए-गुलशन-ए-जन्नत न खींच
लग गया है जी हमारा इस ख़राब-आबाद में
हश्र तक भी खींच नहीं सकने की सूरत यार की
गर यूँही हुज्जत रहेगी मानी-ओ-बहज़ाद में
कूचा-ए-जानाँ में यारो कौन सुनता है मिरी
मुझ से वाँ फिरते हैं लाखों दाद और बेदाद में
शेर कहना आप से 'ग़ाफ़िल' कभी आता नहीं
उम्र इक जब तक न खोई ख़िदमत-ए-उस्ताद में
ग़ज़ल
किस तरह नाला करे बुलबुल चमन की याद में
मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल