किस ने दी आवाज़ ''सिपर की ओट में था''
मेरा सर तो उस के सर की ओट में था
मैं ने सात परिंदे उड़ते देखे थे
एक परिंदा और शजर की ओट में था
मैदानों शहरों में लोग सलामत हैं
मरने वाला अपने घर की ओट में था
यूँ जागी है आग सभी दालानों में
जैसे कोई हाथ शरर की ओट में था
क्यूँ आँखें उम्मीदों की मेहमान रहीं
शायद कोई ख़्वाब सफ़र की ओट में था
आज खुला दुश्मन के पीछे दुश्मन थे
और वो लश्कर इस लश्कर की ओट में था
'साजिद' आज हुनर है उस के साए में
लेकिन कल फ़नकार हुनर की ओट में था
ग़ज़ल
किस ने दी आवाज़ ''सिपर की ओट में था''
ग़ुलाम हुसैन साजिद