किस ने आ कर हम को दी आवाज़ पिछली रात में
कौन हम को छेड़ने आया है इन लम्हात में
हम मिले थे मॉल पर कल जिस लचकती डाल से
काँच की थीं चूड़ियाँ उस मह-जबीं के हात में
रूह-परवर कैफ़ियत मौसम की थी फिर उस का साथ
यार समझे हम ने दारू पी है इस बरसात में
सब्ज़ पेड़ों की सुनें या उन से फिर अपनी कहें
देर तक उलझे रहे कल हम उसी इक बात में
तेज़ चलती थी हवा और डोलते थे पेड़ भी
गुफ़्तुगू उन से हुई थी इक अँधेरी रात में
माबदों की घंटियाँ कल एका-एकी बज उठीं
जाने किस ने उन को छेड़ा पुर-सुकूँ हालात में
प्यार की रुत इस तरह आई कि सब हैरान थे
एक हम ही तो न बे-क़ाबू हुए जज़्बात में
ग़ज़ल
किस ने आ कर हम को दी आवाज़ पिछली रात में
ताज सईद