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किस मुँह से करूँ मैं तन-ए-उर्यां की शिकायत | शाही शायरी
kis munh se karun main tan-e-uryan ki shikayat

ग़ज़ल

किस मुँह से करूँ मैं तन-ए-उर्यां की शिकायत

मिर्ज़ा मायल देहलवी

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किस मुँह से करूँ मैं तन-ए-उर्यां की शिकायत
दामाँ की शिकायत न गरेबाँ की शिकायत

कैसा ही खटकता रहे दिल में मिरे पैकाँ
मुझ से तो न होगी कभी मेहमाँ की शिकायत

इतना भी तग़ाफ़ुल नहीं अच्छा कहीं तुम को
करनी न पड़े शोरिश-ए-पिन्हाँ की शिकायत

अल्लाह रखे मिरे तसव्वुर को सलामत
तुझ को तो नहीं है शब-ए-हिज्राँ की शिकायत

हों लंग मगर वाक़िफ़-ए-आदाब-ए-जुनूँ हूँ
मैं कुफ़्र समझता हूँ बयाबाँ की शिकायत

कहती है तिरी चश्म की गर्दिश मिरे होते
कोई न करे गर्दिश-ए-दौराँ की शिकायत

जाते तो हो काबे को ख़ुदा के लिए 'माइल'
करना न किसी दुश्मन-ए-ईमाँ की शिकायत