किस लिए परवाना ख़ाकिस्तर हुआ
शम्अ' क्यूँ अपनी जलन में घुल गई
मुंतशिर क्यूँ हो गए औराक़-ए-गुल
चीख़ती गुलशन से क्यूँ बुलबुल गई
आबदीदा हो के शबनम क्यूँ चली
दम के दम काँटों में आ कर तुल गई
सब्ज़ा-ए-तर्फ-ए-ख़याबाँ क्या हुआ
आह क्यूँ शादाबी-ए-सुम्बुल गई
कुछ न था ख़्वाब-ए-परेशाँ के सिवा
इस थिएटर की हक़ीक़त खुल गई
राह के रंज-ओ-तअब का क्या गिला
जब कि दिल से गर्द-ए-कुल्फ़त धुल गई
ग़ज़ल
किस लिए परवाना ख़ाकिस्तर हुआ
इस्माइल मेरठी