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किस लिए परवाना ख़ाकिस्तर हुआ | शाही शायरी
kis liye parwana KHakistar hua

ग़ज़ल

किस लिए परवाना ख़ाकिस्तर हुआ

इस्माइल मेरठी

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किस लिए परवाना ख़ाकिस्तर हुआ
शम्अ' क्यूँ अपनी जलन में घुल गई

मुंतशिर क्यूँ हो गए औराक़-ए-गुल
चीख़ती गुलशन से क्यूँ बुलबुल गई

आबदीदा हो के शबनम क्यूँ चली
दम के दम काँटों में आ कर तुल गई

सब्ज़ा-ए-तर्फ-ए-ख़याबाँ क्या हुआ
आह क्यूँ शादाबी-ए-सुम्बुल गई

कुछ न था ख़्वाब-ए-परेशाँ के सिवा
इस थिएटर की हक़ीक़त खुल गई

राह के रंज-ओ-तअब का क्या गिला
जब कि दिल से गर्द-ए-कुल्फ़त धुल गई