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किस लिए जश्न-ए-अना महफ़िल-ए-इदराक में है | शाही शायरी
kis liye jashn-e-ana mahfil-e-idrak mein hai

ग़ज़ल

किस लिए जश्न-ए-अना महफ़िल-ए-इदराक में है

रहबर जौनपूरी

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किस लिए जश्न-ए-अना महफ़िल-ए-इदराक में है
मेरी तारीख़ मिरे दामन-ए-सद-चाक में है

फिर उठा जोश-ए-जुनूँ जज़्बा-ए-मंसूर लिए
फिर अनल-हक़ की सदा कूचा-ए-सफ़्फ़ाक में है

मौत अंजाम है माहौल है ग़फ़लत का यहाँ
वक़्त हर लम्हा शिकारी की तरह ताक में है

फ़त्ह-ए-तक़दीर का ए'जाज़ समझने वाले
फ़त्ह पोशीदा तिरी जुरअत-ए-बे-बाक में है