किस लिए जश्न-ए-अना महफ़िल-ए-इदराक में है
मेरी तारीख़ मिरे दामन-ए-सद-चाक में है
फिर उठा जोश-ए-जुनूँ जज़्बा-ए-मंसूर लिए
फिर अनल-हक़ की सदा कूचा-ए-सफ़्फ़ाक में है
मौत अंजाम है माहौल है ग़फ़लत का यहाँ
वक़्त हर लम्हा शिकारी की तरह ताक में है
फ़त्ह-ए-तक़दीर का ए'जाज़ समझने वाले
फ़त्ह पोशीदा तिरी जुरअत-ए-बे-बाक में है
ग़ज़ल
किस लिए जश्न-ए-अना महफ़िल-ए-इदराक में है
रहबर जौनपूरी