किस की रखती हैं ये मजाल अँखियाँ
कि देखें मुख तिरा सँभाल अँखियाँ
सुर्मा सीती बना सियाह बरन
आज दिल कूँ हुई हैं काल अँखियाँ
रक़्स अंझुवाँ का बे-उसूल नहीं
कफ़-ए-मिज़्गाँ सूँ दे हैं ताल अँखियाँ
जब उठाती हैं गिर्या सीं तूफ़ाँ
कफ़-ए-दरिया करें रुमाल अँखियाँ
सैद करने कूँ दिल के मिज़्गाँ सूँ
रूपते हैं बना के जाल अँखियाँ
दिल कूँ इक तिल नहीं मिरे आराम
लगी हैं जब सूँ तेरे नाल अँखियाँ
दिल की ख़ूनीं अगर नहीं तो क्यूँ
इस क़दर हैं तुम्हारी लाल अँखियाँ
तीर-ए-मिज़्गाँ कमान-ए-अबरू सीं
मारती हैं जिगर में भाल अँखियाँ
'आबरू' जब कभी निगाह करें
तब ले जाँ तन सीं जी निकाल अँखियाँ
ग़ज़ल
किस की रखती हैं ये मजाल अँखियाँ
आबरू शाह मुबारक