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किस की चश्म-ए-मस्त याद आती रही | शाही शायरी
kis ki chashm-e-mast yaad aati rahi

ग़ज़ल

किस की चश्म-ए-मस्त याद आती रही

ख़ुशी मोहम्मद नाज़िर

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किस की चश्म-ए-मस्त याद आती रही
नींद आँखों से मिरी जाती रही

दिल तो शौक़-ए-दीद में तड़पा किया
आँख ही कम-बख़्त शरमाती रही

ज़िंदगी से हम रहे ना-आश्ना
साँस गो आती रही जाती रही

उम्र-भर 'नाज़िर' रहे सहरा-नवर्द
बज़्म-ए-गुलशन गरचे याद आती रही