किस की चश्म-ए-मस्त याद आती रही
नींद आँखों से मिरी जाती रही
दिल तो शौक़-ए-दीद में तड़पा किया
आँख ही कम-बख़्त शरमाती रही
ज़िंदगी से हम रहे ना-आश्ना
साँस गो आती रही जाती रही
उम्र-भर 'नाज़िर' रहे सहरा-नवर्द
बज़्म-ए-गुलशन गरचे याद आती रही
ग़ज़ल
किस की चश्म-ए-मस्त याद आती रही
ख़ुशी मोहम्मद नाज़िर