EN اردو
किस के लिए कीजिए जामा-ए-दीबा-तलब | शाही शायरी
kis ke liye kijiye jama-e-diba-talab

ग़ज़ल

किस के लिए कीजिए जामा-ए-दीबा-तलब

नज़ीर अकबराबादी

;

किस के लिए कीजिए जामा-ए-दीबा-तलब
दिल तो करे है मुदाम दामन-ए-सहरा-तलब

काम रवा हों भला उस से हम अब किस तरह
उस को तमन्ना नहीं हम हैं तमन्ना-तलब

किस से कहीं क्या करें है ये तमाशा की बात
वो तो है पर्दा-नशीं हम हैं तमाशा-तलब

कहिए तो किस किस के अब ग़ौर करे वो तबीब
जिस के तलबगार हों लाख मुदावा-तलब

एक तमन्ना हो तो यार से कहिए 'नज़ीर'
दिल है पुर-अज़-आरज़ू कीजिए क्या क्या तलब