किरदार ही से ज़ीनत-ए-अफ़्लाक हो गए
किरदार गिर गया ख़स-ओ-ख़ाशाक हो गए
हम जैसे सादा-लौह को दुनिया के हाथ से
ऐसी सज़ा मिली है कि चालाक हो गए
शायद बहार आ गई मौज-ए-जुनूँ लिए
दामन जो सिल गए थे वो फिर चाक हो गए
कल तक दवा-ए-दर्द थे कुछ लोग शहर में
आज इक़्तिदार क्या मिला ज़ह्हाक हो गए
क़िस्मत का था मज़ाक़ कि इक हुस्न-ए-इत्तिफ़ाक़
आई हमारी याद जब हम ख़ाक हो गए
उन की नज़र ने 'ताहिरा' ऐसा असर किया
जो दरमियाँ हिसाब थे सब पाक हो गए
ग़ज़ल
किरदार ही से ज़ीनत-ए-अफ़्लाक हो गए
बनो ताहिरा सईद