की मय से हज़ार बार तौबा
रहती नहीं बरक़रार तौबा
तुम मय से करो हज़ार बार तौबा
तुम से ये निभे क़रार तौबा
बंदों को गुनह तबाह करते
होती न जो ग़म-गुसार तौबा
होती है बहार में मुअ'त्तल
करते हैं जो मय-गुसार तौबा
मक़्बूल हो क्यूँ न गर करें हम
बा-दीदा-ए-अश्क-बार तौबा
होगी कभी 'मशरिक़ी' न क़ुबूल
पीरी में करो हज़ार तौबा

ग़ज़ल
की मय से हज़ार बार तौबा
सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी