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की हक़ से फ़रिश्तों ने 'इक़बाल' की ग़म्माज़ी | शाही शायरी
ki haq se farishton ne iqbaal ki ghammazi

ग़ज़ल

की हक़ से फ़रिश्तों ने 'इक़बाल' की ग़म्माज़ी

अल्लामा इक़बाल

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की हक़ से फ़रिश्तों ने 'इक़बाल' की ग़म्माज़ी
गुस्ताख़ है करता है फ़ितरत की हिना-बंदी

ख़ाकी है मगर इस के अंदाज़ हैं अफ़्लाकी
रूमी है न शामी है काशी न समरक़ंदी

सिखलाई फ़रिश्तों को आदम की तड़प उस ने
आदम को सिखाता है आदाब-ए-ख़ुदावंदी