की हक़ से फ़रिश्तों ने 'इक़बाल' की ग़म्माज़ी
गुस्ताख़ है करता है फ़ितरत की हिना-बंदी
ख़ाकी है मगर इस के अंदाज़ हैं अफ़्लाकी
रूमी है न शामी है काशी न समरक़ंदी
सिखलाई फ़रिश्तों को आदम की तड़प उस ने
आदम को सिखाता है आदाब-ए-ख़ुदावंदी
ग़ज़ल
की हक़ से फ़रिश्तों ने 'इक़बाल' की ग़म्माज़ी
अल्लामा इक़बाल