की एहतियात दल ने बहुत पर कहा गया
छोड़ी जो उन की राह तो दर दर कहा गया
साक़ी ने मेरे नाम पे साग़र पटक दिया
तिश्ना-लबी को मेरा मुक़द्दर कहा गया
हर चश्म-ए-इल्तिफ़ात के हुस्न-ए-निगाह को
आईना-ए-ख़ुलूस का जौहर कहा गया
एहसास-ए-हुस्न-ए-ज़र्फ़ से मिलती है आबरू
पानी की एक बूँद को गौहर कहा गया
ऐ सुब्ह की किरन ये ख़यालात-ए-ज़िंदगी
वो बात कौन थी जिसे घर घर कहा गया
परवाज़ियों की शरह नज़र तक न कर सकी
लेकिन ख़याल-ए-ताइर-ए-बे-पर कहा गया
नैरंगियों की बात है ऐ आरिज़-ए-जमाल
शो'ला दहक उठा तो गुल-ए-तर कहा गया
'जुम्बिश' सकूँ-नवाज़-मिज़ाजी को छोड़िए
ख़ामोशी-ए-हयात को अक्सर कहा गया

ग़ज़ल
की एहतियात दल ने बहुत पर कहा गया
जुंबिश ख़ैराबादी