EN اردو
किधर है आज इलाही वो शोख़ छल-बलिया | शाही शायरी
kidhar hai aaj ilahi wo shoKH chhal-baliya

ग़ज़ल

किधर है आज इलाही वो शोख़ छल-बलिया

नज़ीर अकबराबादी

;

किधर है आज इलाही वो शोख़ छल-बलिया
कि जिस के ग़म से मिरा दिल हुआ है बावलिया

तमाम गोरों के हैरत से रंग उड़ जाते
जो घर से आज निकलता वो मेरा साँवलिया

तुझे ख़बर नहीं बुलबुल के बाग़ से गुलचें
बड़ी सी फूलों की इक भर के ले गया डलिया

'नज़ीर' यार की हम ने जो कल ज़ियाफ़त की
पकाया क़र्ज़ मँगा कर पोलाव और क़ुलिया

सो यार आप न आया रक़ीब को भेजा
हज़ार हैफ़ हम ऐसे नसीब के बलिया

इधर तो क़र्ज़ हुआ और अधर न आया यार
पकाई खीर थी क़िस्मत से हो गया दलिया