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ख़्वारियाँ बदनामियाँ रुस्वाइयाँ | शाही शायरी
KHwariyan badnamiyan ruswaiyan

ग़ज़ल

ख़्वारियाँ बदनामियाँ रुस्वाइयाँ

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

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ख़्वारियाँ बदनामियाँ रुस्वाइयाँ
इश्क़ ने शक्लें ये सब दिखलाइयाँ

वो ही कीं बातें जो तुझ को भाइयाँ
बल बे ऐ ज़ालिम तिरी ख़ुद-राइयाँ

मर गए लाखों ही और परवाना की
क्या कहूँ मैं उस की बे-परवाइयाँ

एक सूरत के लिए इस इश्क़ में
सैकड़ों सूरत की हैं रुस्वाइयाँ

शौक़ में आग़ोश-ए-तेग़-ए-नाज़ के
ज़ख़्म-ए-दिल लेते हैं सब अंगड़ाइयाँ

हम से पूछे कोई उज़्लत का मज़ा
गोशा-ए-सहरा है और तन्हाइयाँ

दिल मुशब्बक सूरत-ए-बादाम है
बर्छियाँ पलकों की किस की खाइयाँ

ख़ाना-ए-दिल पर हमारे या नसीब
बादलों ने बिजलियाँ बरसाइयाँ

'मुसहफ़ी' भी है फंकैतों में मियाँ
याद हैं उस को भी कितनी घाइयाँ