EN اردو
ख़्वाहिश-ए-ऐश नहीं दर्द-ए-निहानी की क़सम | शाही शायरी
KHwahish-e-aish nahin dard-e-nihani ki qasam

ग़ज़ल

ख़्वाहिश-ए-ऐश नहीं दर्द-ए-निहानी की क़सम

अख़्तर अंसारी

;

ख़्वाहिश-ए-ऐश नहीं दर्द-ए-निहानी की क़सम
बुल-हवस खाया करें इशरत-ए-फ़ानी की क़सम

इक ग़म-अंगेज़ हक़ीक़त है हमारी हस्ती
क़िस्सा-ख़्वाँ तेरी ग़म-अंगेज़ कहानी की क़सम

दिल की गहराइयों में आग दबी रखता हूँ
चश्म-ए-गिर्यां से बरसते हुए पानी की क़सम

जब से आई है ख़ुदा रक्खे जवानी 'अख़्तर'
हम हर इक बात पर खाते हैं जवानी की क़सम