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ख़्वाब की सूरत कभी हम-रंग अफ़्साना मिले | शाही शायरी
KHwab ki surat kabhi ham-rang afsana mile

ग़ज़ल

ख़्वाब की सूरत कभी हम-रंग अफ़्साना मिले

सहबा अख़्तर

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ख़्वाब की सूरत कभी हम-रंग अफ़्साना मिले
चाँद जैसे लोग हम से माहताबाना मिले

दीदा-ओ-दिल में बसा ली उस के कूचे की हवा
उस की ज़ुल्फ़ों की महक से भी असीराना मिले

हम भी इक बुत की परस्तिश के लिए बेताब हैं
कौन जाने कब मोहब्बत का सनम-ख़ाना मिले

आरज़ू-मंद-ए-तमाशा हैं मिरी तन्हाइयाँ
कोई काशाना नहीं तो कोई वीराना मिले