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ख़्वाब की बस्ती में अफ़्साने का घर | शाही शायरी
KHwab ki basti mein afsane ka ghar

ग़ज़ल

ख़्वाब की बस्ती में अफ़्साने का घर

अब्दुल मन्नान तरज़ी

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ख़्वाब की बस्ती में अफ़्साने का घर
शम्अ' की लौ पर है परवाने का घर

बन गए आख़िर हरीफ़-ए-बाल-ओ-पर
दाम की दीवार और दाने का घर

आप भी संग-ए-तअक़्क़ुल फेंकिए
आइना-ख़ाना है दीवाने का घर

मैं जुनून-ए-इश्क़ और सहरा-ए-ग़म
तू अदू की बज़्म बेगाने का घर

अक़्ल-ओ-दानिश इल्म-ओ-इरफ़ाँ फ़िक्र-ओ-होश
किन हिसारों में है फ़रज़ाने का घर

हो गए गुमराह कुछ मेरी तरह
ढूँडते हैं शैख़ पैमाने का घर

क़िस्मत-ए-'तरज़ी' यही जागीर थी
शहर-ए-ग़म कहिए कि वीराने का घर