EN اردو
ख़्वाब जज़ीरा बन सकते थे नहीं बने | शाही शायरी
KHwab jazira ban sakte the nahin bane

ग़ज़ल

ख़्वाब जज़ीरा बन सकते थे नहीं बने

दानियाल तरीर

;

ख़्वाब जज़ीरा बन सकते थे नहीं बने
हम भी क़िस्सा बन सकते थे नहीं बने

किरनें बर्फ़ ज़मीनों तक पहुँचाने को
बादल शीशा बन सकते थे नहीं बने

क़तरा क़तरा बहते रहे बे-माया रहे
आँसू दरिया बन सकते थे नहीं बने

अपना घर भी ढूँड न पाते खो जाते
जुगनू अंधेरा बन सकते थे नहीं बने

हम दो-चार मोहब्बत लिखने वाले लोग
दुनिया जैसा बन सकते थे नहीं बने

ख़्वाब तिलावत हो सकता था नहीं हुआ
दर्द सहीफ़ा बन सकते थे नहीं बने

इस बिर्हा के चाँद की सूरत हम भी 'तरीर'
रात को कतबा बन सकते थे नहीं बने