EN اردو
ख़्वाब ऐसे कि गई रात डराने लग जाएँ | शाही शायरी
KHwab aise ki gai raat Darane lag jaen

ग़ज़ल

ख़्वाब ऐसे कि गई रात डराने लग जाएँ

क़य्यूम ताहिर

;

ख़्वाब ऐसे कि गई रात डराने लग जाएँ
दर्द जागे तो सुलाने में ज़माने लग जाएँ

हम वो नादान हवाओं से वफ़ा की ख़ातिर
अपने आँगन के चराग़ों को बुझाने लग जाएँ

थोड़े गेहूँ अभी मिट्टी पे रखे रहने दो
वो परिंदे कि कभी लौट के आने लग जाएँ

आस महके जो किसी खोए जज़ीरे की कभी
तेरी बाँहें मुझे साहिल पे बुलाने लग जाएँ

कोई दुश्मन न हो इन को तो ये ईज़ा-परवर
अपने ख़ेमों पे ही तीरों को चलाने लग जाएँ