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ख़ून-ए-तमन्ना रंग लाया हो ऐसा भी हो सकता है | शाही शायरी
KHun-e-tamanna rang laya ho aisa bhi ho sakta hai

ग़ज़ल

ख़ून-ए-तमन्ना रंग लाया हो ऐसा भी हो सकता है

यूनुस ग़ाज़ी

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ख़ून-ए-तमन्ना रंग लाया हो ऐसा भी हो सकता है
तन्हाई में वो रोया हो ऐसा भी हो सकता है

सब के चेहरे पर चेहरा था मैं किस को अपना कहता
कोई मुझे भी ढूँड रहा हो ऐसा भी हो सकता है

जिस ने मेरा घर लुटने में चोरों की अगुवाई की
वो मेरा ही हम-साया हो ऐसा भी हो सकता है

महफ़िल है अंगुश्त-ब-दंदाँ अहल-ए-नज़र पर रिक़्क़त तारी
शे'र करिश्मा कर ही गया हो ऐसा भी हो सकता है

भीड़ में उस को मैं ने देखा देख लिया था उस ने भी
या फिर नज़रों का धोका हो ऐसा भी हो सकता है

दौलत शोहरत आनी जानी फिर इस पर इतराना क्या
पानी पर ये नाम लिखा हो ऐसा भी हो सकता है

अपनी कहानी जान के यारो नाहक़ आँख भिगोतें हो
उस का ग़म भी तुम जैसा हो ऐसा भी हो सकता है

वक़्त की धूप कड़ी है 'ग़ाज़ी' दानाओं की बस्ती में
बर्फ़ सा चेहरा सुलग रहा हो ऐसा भी हो सकता है